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(مـهـلاً00تـوقّــف) قــالــهــا (بـرشــامـي) |
فـرمـقــتـــــه بـعــلامـــة اســـتــفــهــــام ِ |
مــن ذا يــنــاديــنــي (تــوقــــــف) آمــــراً |
أوَ ذاك أنــتَ صـــديقـي يا ( بـرشـامي) ؟ |
فــــرمــى إلــيّ بـنـظـــرة مــكـــلـــومــــةٍ |
مــن بـيـــن أحــــــزان و مــن أســـــقـــام ِ |
فـــســـألــتــه مــالــي أراك و قــــد عـــلا |
وجـهُ العـبـوس بـوجـــهــك الـبــسـّـــام ِ؟ |
فــأجـــاب بـــعــــد تـــــردد و تـــنـــهّـــــد |
و لــقــد بـــدا مــتــوســّـــد (الأقــــــلام ِ) |
هــذي حـــيـاتـي عــشــتــهــا مـتـعـذبـاً |
مـن شــوكــة الـفــرجــار و الــمــرســام ِ |
هــذا يـُجـمّـعـنـي بـضـيــق مــســـاحــةٍ |
فــيــــخـــطـّــنـــي بــأنـامــــل الأقــــزام ِ |
و ســـواه يــعـمـد أن يـُصـغـّـر صـفـحـتـي |
حـتـى يـُخـبــئــنــي عــلــى الإبـــهـــام ِ |
و ســـــواه يـنـحـتــنــي عـلـى أقــلامــه |
فــأمــــوتُ مــن وجـــــع و مــن إيـــــلام ِ |
و ســـواه يـكـتـبـنـي عـلـى مــنــديــلــه |
فــأصـــاب بـعــد عـطـــاســـه بــزكـــــام ِ |
و ســـواه يـكـتـبـنـي عـلـى ســــروالـــه |
فـيــكــون مـــــوتـــي دونـــمــا إكــــــرام ِ |
أنـا لــســت وحـدي في الحـيـاة و إنــمـا |
كُـتـبــت عـلـيّ مــــآســــــيُ الأيـــتــــام ِ |
لــــي والــــدٌ ذو خـــبـــرةٍ و مــــهــــــارةٍ |
يـَـخـــفــى و يــظــهـــر مـــرّة في العـام ِ |
عــــرف الحـيــاة مـن الـتـجــارب مـوسماً |
يُــدعـى امـتـحـــان مــخـــازن الأفــهــام ِ |
فـيـكـــون عـونـاً للـذيـن مــضــت بــهــم |
أوقــاتـــهــم فــي غــفــلـــةٍ و مــــنـــام ِ |
لــكــنـــهــم قـد أوقــعــوه بــحـــيـــلــــةٍ |
مــحـــبــوكــةٍ فـي غـــايـــة الإحـــكـــام ِ |
طـــلـب التـمــهّـــل و اسـتـمـاع دفـاعــه |
حـتــى يــخـــفـّــف وطـــــأة الأحـــكــــام ِ |
قـالــوا : ارتـكــبــتَ جــنــايــة ً و جــريمـة ً |
و الـغــــشّ مــحـــســــوبٌ مــن الآثــــام ِ |
قــال الـــرسـول مــوجـهـاً :"من غـشّـنـا |
لـيــس مــنـّـا" هــل لــديــك مـــحـــام ِ؟ |
فــأجـــاب إنــــي مــا أتـيـتُ بـخــاطــري |
لـكـنـنـي أُرغـــمـــتُ فــي الإجــــــــرام ِ |
لــكـــنــهــــم لــمّـــا رأوه مــخـــالـــفــــاً |
لـنــظــامـهـــم جـعــلــوه كـــوم حــطـام ِ |
قـد حـــاكــمــــــــوه بــــدون أيّ رويّـــــة |
حــكــمــاً قـــــضـى الـتـمـزيـق بالإعـدام ِ |
و كــذاك أمّـــــي أظــهــرتـهـا خـلـســـة ً |
تـلــمـــيـــذة ٌ مـــن طـــرحـــةٍ و لـــثـــام ِ |
قــد أمــــســكــتــهــا أبــلــة ٌ بــبــراعــةٍ |
و مــــضتْ بها للسجـن في اسـتسـلام ِ |
حـــــكــمــوا عليهـا بالـمـــؤبــد عـنـــدما |
قـد دُبـّـــســتْ في مـحـضــر الأقـســام ِ |
و كــــــذاك أخــتـي عـنـدمـا ظـفــروا بها |
في ســـــاعــةٍ ، في مـعـصـم مـتـرامي |
قــذفـــــوا بـهـا في ســلــةٍ مــمــلـــوءةٍ |
تــمــضــــــي مــــع الأيـــام لـلإضـــــرام ِ |
وأخـي الحـــبـيــب قـضى غـريـقـاً نـحـبه |
بـلـعــاً بـبـــطــن الــطـــالــب الـغـشّـــام ِ |
هــذا مــــصــيــر الـســابـقـيــن و إنـنـي |
أخــشـــى بــأن ألــقــاه فــي أيــامـــي |
إنــي مـلـلـــتُ الـغــشّ لــســت أطـيقه |
فـإلـى مـتـــى أحــــيــا بـــدون ســــلام ِ ؟! |
لـــمَ لا أكــــــون وســـيـلــة ً يـُـعـنـى بها |
أحـــيــا بـــــرغــم تـــفـــاوت الأحـــجــام ِ ؟! |
لــمَ لا أكــــــون صــحـيـفــة ً فـي حــائـط |
أحـــيــا كــــــريـــمــاً فـي عُـــلـوّ مــقـام ِ ؟! |
لــمَ لا أكــــــون كـــتــيـّـبــاً أو نــشــــرة ً |
لــمَ لا أكــــــون مـجــسـّـمــاً بـــقــــوام ِ ؟! |
مــا ضــرّ مـــــــرءاً أنْ يُــجـاهـــد نــفسه |
بــل ضــرّ أنْ يـــــأتــي فِـــعــــال حـــرام ِ |
هــذا مـقـالــــــي يـا صـديـقـي فارعني |
وارع الصـــداقــــــةَ مـن دجـى الإظــلام ِ |
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