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نـــورٌ تـفــتّــق و الـنـجــــوم تـنــادي |
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أهــلاً بـمـــقـــدم نــــورنـا الــوقـّــادِ |
فـبـدورنا شـــعّ الضـيـاءُ بـوجـهـهـــا |
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مـن رؤيـــــة الأحــبــاب و الــعــــوّادِ |
و الـحـمـد لـلّـه الـذي أرسـى لـنــــا |
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ديــنـا يُــديــــم ســعــادة الــعــبّــادِ |
و صــلاتـه و ســـلامــه مـنـّا لـمــنْ |
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خـط الطـريـــق على هـدىً و رشادِ |
فـالـيــوم فـــرحٌ ما حـوتـه مـشـاعرٌ |
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مـن فـيـــض أنــوار العـريـس الـبــادِ |
رغــبَ الـــــزواج لأن فــيــه حـصـانةٌ |
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و الـخــيـــر فـيـه يـصـيـر دومـاً غــادِ |
فمضى يفـتـّش عن جـواهـر عـفّـة |
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كـي يُـمـضــي الأيـام في إسـعــادِ |
أرسـى القـواعـد في يقـيـن ثابــتٍ |
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و مـشـى عـلـى درب الـنـبيّ الهادِ |
و عـروسـنا قد زانـهـا في نفــسهـا |
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أدبٌ ، و إكــــــرامٌ ، و حــفـــظُ ودادِ |
قـد زيـنـتـــهـا أمـُّـهــا بـفـضــيــلـــة |
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وأبٌ لــهــا مــا بــاعــهــا بــمـــــزادِ |
هـذان زوجــان اسـتـطــاعـا عـفّـــةً |
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فـادعــوا لــهــم بـالـيـمــن و الأولادِ |
يـا مـن حــبـاكـم ربـُّـنـا بـجـــواهــر |
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و الـبـاب يُـطــرق مـن يــد القُـصّــادِ |
مـن للـشــــبـاب إذا أرادوا عـــفّـــةً |
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مــن للشــــبـاب يقـودهـم بـسدادِ |
أنـتــم رجــالاتُ الـديـار و أهــلُــهــا |
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فـلـتــزرعـوا الأفـــــراح لــلــحـصّــادِ |
و لـتـجـعـلـوا أيـامـهــم في ظـلكـم |
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أفـــراح تـمــــلأ مـهـجــة الــعـــوّادِ |
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