|
|
| سـأبـقى وإن لم يكــنْ باخــتياري |
|
|
ولكــنّ حــبــّي ذوى بانكـســاري |
| فإن شئتَ جـسـمــًا بقـلـب ٍذبــيـح ٍ |
|
|
إليكَ الخــيالُ اسـتوى بانـصهاري |
| فـقـدْ شاء قـلبي نظامــًا بصَـرحي |
|
|
وما كنتُ أدري بهـول ِانحـداري |
| رسـمتَ الـرّوابي وحـقـلا ًبـورد ٍ |
|
|
فأفنيتَ وردي بسيـْـل ِاعتصاري |
| نـقـشـتَ الأسـامي بـجــذع ٍقديــم ٍ |
|
|
فـماتــتْ جــذورٌ بأرضي وداري |
| حـفرتَ المـعـاني لروض ٍبحقلي |
|
|
وشـوّهـتَ إرْثي بزخـم ِاحـتـقاري |
| غـرزتَ الصـّواري لحـب ٍقـويــم ٍ |
|
|
وسهـمــًا بسِــمّ ٍ لقـلـبي المـُـداري |
| رضـيتُ انـزوائي بركن ٍ سـقـيـم ٍ |
|
|
وقدْ كان تـوْقي لحـضن ِافتخـاري |
| فإيــّـاكَ أن تـلـتـقي في خـِـضـمّي |
|
|
فقـدْ جـفَّ قلبي وحــانَ افـتــقاري |
| صـقـيعٌ بجـسمي ووخـز ٌ بدمـعي |
|
|
فـقـدْ كنتَ جـوّي ثـلوجـي وناري |
| أعـنــّي حـبيبي فـطـيْـفي ينـــادي |
|
|
وما كنـتُ يومــًا أحـبُّ انهـيـاري |
| فـهـيــّـا سريعــًا عـليكَ احـتوائي |
|
|
ولمْـلمْ شــتاتي بـُـعـيْـدَ انشطاري |
| سأبني قصورًا بحبــّي وعــشـقي |
|
|
فلا زالَ نبضي دواء اصطـباري |
| إذا جـئتَ تحـنـو فـقـلبي شغـوفٌ |
|
|
لقـول ٍصـريـح ٍ يـردٌّ اعــتـبـاري |
| وغــرْس ٍبأرْضـي لبــذر ٍجـديـد ٍ |
|
|
يراضي وجودي فأحيا ازدهاري |
| سأشفى سريعـــًا فـعـرْقي نـبـيـلٌ |
|
|
وأصلي بقـلبي قــويمُ الصـّواري |
| وحبــّي عـريق ٌ تـفـانى بضمـّي |
|
|
شتاءً وصيفــًا بطـول ِانـتـظاري |
| سأبـقى حــبيبي رضــاءً لقــلبي |
|
|
فلن يرتضي أن أعيشَ انتحـاري |